Menu
blogid : 14383 postid : 54

अमृत कुम्भ-2013, पृष्ठ – 2

AMRIT KUMBH - 2013
AMRIT KUMBH - 2013
  • 30 Posts
  • 0 Comment

विभिन्न धर्मो के वर्तमान धर्म गुरूओं को समर्पित
”विश्वशास्त्र“ साहित्य

”मैनें बिना किसी धर्म के धर्म गुरू के मागदर्शन के विश्वशास्त्र की रचना स्वप्रेरणा से की है। वर्तमान समाज कहता है कि बिना गुरू के ज्ञान नहीं होता। इस सूत्र से मैं अभी भी अज्ञानी हूँ और मुझे ज्ञान की आवश्यकता अभी भी है। मैंने जीवन पर्यन्त प्रत्येक से कुछ न कुछ ज्ञान प्राप्त किया है इसलिए मेरा कोई एक गुरू नहीं हो सकता। मेरी इच्छा है कि वर्तमान समय में उपलब्ध विभिन्न धर्म के धर्म गुरूओं का मैं शिश्यत्व ग्रहण करूँ। शिष्य अपनी योग्यता प्रस्तुत कर चुका है। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि विभिन्न धर्म के धर्म गुरूओं को मुझे शिष्य के रूप में स्वीकार करने पर गर्व का अनुभव होगा। जब समाज को यह विश्वास हो जाये कि मैं ही राष्ट्र-पुत्र स्वामी विवेकानन्द का सार्वजनिक प्रमाणित पुनर्जन्म हँू और उनके विश्व-बन्धुत्व के विचार के विश्वव्यापी स्थापना के लिए शासन प्रणाली के अनुसार प्रारूप प्रस्तुत किया हूँ तब मुझे किसी राष्ट्रीय स्तर के आयोजन में वैसा ही वस्त्र धारण कराया जाय जैसा कि राष्ट्र-पुत्र स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो धर्म संसद वकृतता में धारण कर रखा था तथा ब्रह्माण्ड से मेरे असीम प्रेम को सार्वजनिक प्रमाणित सिद्ध किया जाये क्योंकि बिना व्यापक प्रेम के व्यापक कर्म नहीं हो सकता, न ही बिना व्यापक कर्म के व्यापक प्रेम हो सकता है। यह इसलिए है कि प्रेम व कर्म एक दुसरे के अदृश्य व दृश्य रूप है। और मैं कर्म करके ऋृषि, महात्मा या सन्यासी का वस्त्र पाना चाहता हूँ जिससे मैं यह जान सकूँ कि मैं इस योग्य हूँ। बस इतना ही समाज से मेरी अन्तिम इच्छा है।“ “ -लव कुश सिंह ”विश्वमानव“

विश्व कल्कि ओलंपियाड
सुनिश्चित पुरस्कार रूपये 1 करोड़

प्रस्तुत शास्त्र का मुख्य विषयं ”मन का विश्वमानक-शून्य (WS-0) श्रंृखला और पूर्ण मानव निर्माण की तकनीकी-WCM-TLM-SHYAM.C“ है जो सम्पूर्ण विश्व के लिए सकारात्मक विचारों के एकीकरण के द्वारा मानव मस्तिष्क के एकीकरण के लिए आविष्कृत है। जिसे आविष्कारक ने इस चुनौती के साथ प्रस्तुत किया है कि यह विश्व व्यवस्था के लिए अन्तिम है। आविष्कार के मुख्य विषय के अलावा सभी आॅकड़े उस आविष्कार को आधार एवं पुष्टि प्रदान करने के लिए प्रयुक्त किये गये हैं जो वर्तमान समाज में पहले से ही प्रमाण स्वरूप विद्यमान हैं।
”सत्यकाशी ब्रह्माण्डीय एकात्म विज्ञान विश्वविद्यालय (स.ब्र.ए.वि.वि), ट्रस्ट इस आविष्कार को अन्तिम होने की पुष्टि करते हुये और उसके प्रति ध्यानाकर्षण करने हेतू यह घोषणा करता है कि जब तक मानव सृष्टि रहेगी तब तक मानव मस्तिष्क के एकीकरण और विश्व व्यवस्था, शान्ति, एकता, स्थिरता, एकीकरण सहित स्वस्थ लोकतन्त्र इत्यादि के लिए कोई दूसरा इससे अच्छा आविष्कार यदि प्रस्तुत होता है तब ट्रस्ट उस व्यक्ति/संस्था को रूपये 1 करोड़ का पुरस्कार प्रदान करेगी जो काल के दूसरे और अन्तिम दृश्य काल व युग के चैथे-कलियुग के अन्त और पाँचवें स्वर्णयुग के प्रारम्भ के दिन शनिवार, 22 दिसम्बर, 2012 से लागू होकर अनन्त काल तक चलता रहेगा।
31 दिसम्बर, 2021 तक उपरोक्त पुरस्कार यदि कोई व्यक्ति या संस्था इसे न प्राप्त कर सका तो प्रारम्भ 22 दिसम्बर, 2012 से 1 जनवरी, 2022 तक 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित मूल राशि को मूलधन के रूप मे समायोजित कर उस राशि पर प्राप्त प्रत्येक वर्ष के व्याज की राशि को प्रत्येक वर्ष ऐसे 10 शोध छात्रों को छात्रवृत्ति के रूप में वितरित की जायेगी जो विश्व एकीकरण की दिशा में किसी विषय में शोध के इच्छुक होगें। बावजूद इसके उपरोक्त 1 करोड़ रूपये का पुरस्कार अनन्त काल तक के लिए चलता ही रहेगा।

(चन्द्रेश कुमार)
मुख्य ट्रस्टी एवं अध्यक्ष
सत्यकाशी ब्रह्माण्डीय एकात्म विज्ञान विश्वविद्यालय (स.ब्र.ए.वि.वि)

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply