Menu
blogid : 14383 postid : 52

अमृत कुम्भ-2013, पृष्ठ – 3

AMRIT KUMBH - 2013
AMRIT KUMBH - 2013
  • 30 Posts
  • 0 Comment

”विश्वशास्त्र“ की रचना क्यों?

”विश्वशास्त्र“ की रचना मात्र निम्न कारणो से की गई है और अगर प्रस्तुत शास्त्र ”विश्वशास्त्र“ नहीं है तो ऐसे शास्त्र की रचना मानव बुद्धि शक्ति समाज द्वारा निम्न कारणों के लिए की जानी चाहिए।
1. प्रकृति के तीन गुण- सत्व, रज, तम से मुक्त होकर ईश्वर से साक्षात्कार करने के ”ज्ञान“ का शास्त्र ”श्रीमदभगवद्गीता या गीता या गीतोपनिषद्“ उपल्ब्ध हो चुका था परन्तु साक्षात्कार के उपरान्त कर्म करने के ज्ञान अर्थात ईश्वर के मस्तिष्क का ”कर्मज्ञान“ का शास्त्र उपलब्ध नहीं हुआ था अर्थात ईश्वर के साक्षात्कार का शास्त्र तो उपलब्ध था परन्तु ईश्वर के कर्म करने की विधि का शास्त्र उपलब्ध नहीं था। मानव को ईश्वर से ज्यादा उसके मस्तिष्क की आवश्यकता है।
2. प्रकृति की व्याख्या का ज्ञान का शास्त्र ”श्रीमदभगवद्गीता या गीता या गीतोपनिषद्“ तो उपलब्ध था परन्तु ब्रह्माण्ड की व्याख्या का तन्त्र शास्त्र उपलब्ध नहीं था।
3. समाज में व्यष्टि (व्यक्तिगत प्रमाणित) धर्म शास्त्र (वेद, उपनिषद्, गीता, बाइबिल, कुरान इत्यादि) तो उपलब्ध था परन्तु समष्टि (सार्वजनिक प्रमाणित) धर्म शास्त्र उपलब्ध नहीं था जिससे मानव अपने-अपने धर्मो में रहते और दूसरे धर्म का सम्मान करते हुए विश्व-राष्ट्र धर्म को भी समझ सके तथा उसके प्रति अपने कत्र्तव्य को जान सके।
4. शास्त्र-साहित्य से भरे इस संसार में कोई भी एक ऐसा मानक शास्त्र उपलब्ध नहीं था जिससे पूर्ण ज्ञान की उपलब्धि हो सके साथ ही मानव और उसके शासन प्रणाली के सत्यीकरण के लिए अनन्त काल तक के लिए मार्गदर्शन प्राप्त कर सके अर्थात भोजन के अलावा जिस प्रकार पूरक दवा ली जाती है उसी प्रकार ज्ञान के लिए पूरक शास्त्र उपलब्ध नहीं था जिससे व्यक्ति की आजिविका तो उसके संसाधन के अनुसार रहे परन्तु उसका ज्ञान अन्य के बराबर हो जाये।
5. ईश्वर को समझने के अनेक भिन्न-भिन्न प्रकार के शास्त्र उपलब्ध थे परन्तु अवतार को समझने का शास्त्र उपलब्ध नहीं था।

”विश्वशास्त्र“ के बाद का मनुष्य, समाज और शासन

प्रकृति की व्याख्या द्वारा ज्ञान के अन्त के शास्त्र ”श्रीमदभगवद्गीता या गीता या गीतोपनिषद्“ के बाद ब्रह्माण्ड की व्याख्या द्वारा कर्मज्ञान के अन्त का मानक व तन्त्र शास्त्र – विश्वशास्त्र उपलब्ध होने के बाद मनुष्य, समाज और शासन का निर्माण किस दिशा की ओर होगी यह विचारणीय विषय है। जिसकी संक्षिप्त रूपरेखा निम्न प्रकार है-
1. शिक्षा में शिक्षा पाठ्यक्रम को बदले बिना एक पूरक शास्त्र मनुष्य को उपलब्ध हो जायेगा जिससे वह अपने कर्मो के विश्लेषण व तुलना से जान सकेगा कि वह पूर्ण ईश्वरीय कार्य के अंश जीवन यात्रा में कितनी यात्रा तय कर चुका है और वह यात्रा इस जीवन में पूर्ण करना चाहता है या यात्रा जारी रखना चाहता है।
2. पृथ्वी के मानसिक विवादों को समाप्त कर मनुष्य, समाज व शासन को एक संतुलित कर्मज्ञान का मानक प्राप्त होगा जिससे एकात्मकर्मवाद का जन्म होगा। इस कारण सम्पूर्ण कर्म और मनुष्यता की सम्पूर्ण शक्ति एक दिशा की ओर होगी जिससे ब्रह्माण्डीय विकास होगा।
3. व्यक्ति आधारित समाज व शासन से उठकर मानक आधारित समाज व शासन का निर्माण होगा। अर्थात जिस प्रकार हम सभी व्यक्ति आधारित राजतन्त्र में राजा से उठकर व्यक्ति आधारित लोकतन्त्र में आये, फिर संविधान आधारित लोकतन्त्र में आ गये उसी प्रकार पूर्ण लोकतन्त्र के लिए मानक व संविधान आधारित लोकतन्त्र में हम सभी को पहुँचना है।
4. सभी का ज्ञान-कर्मज्ञान समान हो जाने से हम सभी वर्तमान में जीवन जीते हुये अपनी शक्ति का अधिकतम उपयोग करने में सक्षम हो जायेंगे।
5. अन्ततः सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य जगत व विज्ञान में अधिकतम मन केन्द्रित होने से प्रत्यक्ष पर ही विश्वास होगा और डाॅ0 संदीप बीजे बाग, संस्थापक एवं अध्यक्ष, ”विश्व सेवा तीर्थ“, 106, ओस्तवाल शापिंग सेन्टर, प्रथम तल, भयन्दर (पूर्व), थाणे (महाराष्ट्र)-401105 के निम्न पाँच विचार सत्य सिद्ध होगें।

ईश्वर के नाम पर युद्ध समाप्त करने के लिए एक प्रभु – सूर्य
देश के नाम पर युद्ध समाप्त करने के लिए एक देश – विश्व
धर्म के नाम पर युद्ध समाप्त करने के लिए एक धर्म – प्रेम
कर्म के नाम पर युद्ध समाप्त करने के लिए एक कर्म – सेवा
जाति के नाम पर युद्ध समाप्त करने के लिए एक जाति – मानव

निर्णय आपके हाथ,
एकता का प्रयास या अनेकता का विकास

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply