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अमृत कुम्भ-2013, पृष्ठ – 5

AMRIT KUMBH - 2013
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21 दिसम्बर,2012 को दुनिया में

क्या नई घटना घटित हुई?

पिछले 3 वर्षो से शुक्रवार, 21 दिसम्बर, 2012 का दिन बहुत अधिक चर्चित, भयावह और विभिन्न सकारात्मक और नकारात्मक भविष्यवाणियों के कारण विश्व के अधिकतम व्यक्तियों का ध्यान केन्द्रित करने वाला दिन रहा है। जिसका मुख्य कारण मायां सभ्यता ने अपने क्लासिक युग (250-900 सी.ई.) के दौरान जो जटिल कैलेण्डर विकसित किये थे, वह था। यही कैलेण्डर लोगों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ था जो 21 दिसम्बर, 2012 को समाप्त हो गया। इस दिन को भविष्यवक्ता और कैलेण्डर के व्याख्याकारगण विनाश और नवसृजन दोनों के रूप में व्यक्त किये थे। शुक्रवार, 21 दिसम्बर, 2012 का दिन तो निकल कर भूतकाल हो गया। विनाश जैसी कोई घटना तो नहीं हुई फिर नवसृजन के लिए नयी घटना क्या हुयी, इसी को जानना आवश्यक है जिससे संसार यह जान सके कि मायां कैलेण्डर और अनेक भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणीयाँ किसी भी रूप में गलत नहीं थीं।
मायां, के केवल एक ज्ञात शिलालेख है, जो कि नष्ट तथा टूटी-फूटी है। पुरालेखशास्त्री डेविड स्टुआर्ट ने इसका अनुवाद किया है जिसमें तीन कैलेण्डर एक तारीख का सन्दर्भ है।
”तेरह बकतुन चार अहाऊ में खत्म होगें, तीसरा कनकिन, यह.. होगा नौ सहायक देवों का अवतरक……“
नौ देवता शून्य दिन को लौटेगें, जो कि मकर संक्रान्ति होगी। ये नौ देवता, एक व्यक्ति के रूप में देखे जाते हैं तथा नौ देवताओं के आगमन की भविष्यवाणी ”द चीलम वालम आॅफ तिजीमिन“ में भी मिलती है।
मायां कलैण्डर में 20 दिन बराबर 1 युईनल, 18 युईनल बराबर 1 तुन, 20 तुन बराबर 1 कातुन, 20 कातुन (400 वर्षों से कम) बराबर 1 बकतुन, 13 बकतुन बराबर 1 युग के होता था। और इसका 1 चक्र बनता है। जो 1,87,200 दिन या लगभग 5,125 वर्ष का होता है। और यह हमारे इस वर्तमान युग को परिभाषित करता है। यह 21 दिसम्बर, 2012 को पूरा होगा, जब लांग काउंट तिथि 13.0.0.0.0 तक पहुँचेगा। मायांवासीयों में इस बात पर असहमति है कि अगला दिन 0.0.0.0.1 होगा या 13.0.0.0.1। कुछ सोचते हैं कि पूरा बकतुन 13 अंक का ही होगा और 1.0.0.0.0 को पहला बकतुन शुरू होगा जो 400 तुन (अगले बकतुन) तक जायेगा। हमें यहाँ से नौ देवताओं की वापसी, मौसम का असर, सरकार से मोह भंग, यु.एफ.ओ जैसी वाली कोई वस्तु व जनसंहार की भविष्यवाणी मिलती है। मायां कैलेण्डर व भविष्यवाणियाँ सन् 2012 को एक नये सृजन के रूप में लेता है, जब देवता लौटेगें, एक पुनर्जन्म प्रकार का अनुभव, निरंतर जन उद्भव, चेतना का उदय, मृत्यु के बहुत पास तक जाने का अनुभव, पूरी दुनिया में आध्यात्मिक जागरण, पैरानाॅरमल योग्यताओं में वृद्धि, मानवता की अगली उपजातियों का प्रकटीकरण, धरती की अन्तिम उम्मीद है। इसकी मानवता अपने पुराने खोल से निकलकर सहयोगी, टैलीपैथिक व करूणामयी धरती-प्रेमी के रूप में सामने आएगी।
भौतिकवादी पश्चिमी संस्कृति किसी भी सृजन व विनाश को मानसिक स्तर पर सोच ही नहीं सकता क्योंकि वह समस्त क्रियाकलाप को बाह्य जगत में ही घटित होता समझाता है जबकि वर्तमान समय मानसिक स्तर पर विनाश व सृजन का है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि माया सभ्यता के अनुसार 21 दिसम्बर, 2012 को जो विनाश व सृजन होगा, वह मानसिक स्तर का ही होगा। जिसके परिणामस्वरूप सभी सम्प्रदाय, मत, दर्शन एक उच्च स्तर के विचार या सत्य में विलीन अर्थात विनाश को प्राप्त करेगा। फलस्वरूप उच्च स्तर के विचार या सत्य में स्थापित होने से सृजन होगा। कुल मिलाकर माया सभ्यता के कैलेण्डर का अन्त तिथि 21 दिसम्बर, 2012, दुनिया के अन्त की तिथि नहीं बल्कि वह वर्तमान युग के अन्त की अन्तिम तिथि का अनुमान है जिसके बाद नये युग का आरम्भ होगा।
ईश्वर भी इतना मूर्ख व अज्ञानी नहीं है कि वह स्वयं को इस मानव शरीर में पूर्ण व्यक्त किये बिना ही दुनिया को नष्ट कर दे। इसके सम्बन्ध में हिन्दू धर्म शास्त्रो में सृष्टि के प्रारम्भ के सम्बन्ध में कहा गया है कि- ”ईश्वर ने इच्छा व्यक्त की कि मैं एक हूँ, अनेक हो जाऊँ“। इस प्रकार जब वही ईश्वर सभी में है तब निश्चित रूप से जब तक सभी मानव ईश्वर नहीं हो जाते तब तक दुनिया के अन्त होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। और विकास क्रम चलता रहेगा।
21 दिसम्बर, 2012 के बाद का समय नये युग के प्रारम्भ का समय है जिसमें ज्ञान, ध्यान, चेतना, भाव, जन, देश, विश्व राष्ट्र, आध्यात्मिक जागरण, मानवता इत्यादि का विश्वव्यापी विकास होगा। परिणामस्वरूप सभी मानव को ईश्वर रूप में स्थापित होने का अवसर प्राप्त होगा। और यही विश्व मानव समाज की मूल आवश्यकता है। प्राचीन वैदिक काल में समाज को नियंत्रित करने के लिए ज्ञानार्जन सबके लिए खुला नहीं था परन्तु वर्तमान और भविष्य की आवश्यकता यह है कि समाज को नियंत्रित करने के लिए सभी को पूर्ण ज्ञान से युक्त कर सभी के लिए ज्ञान को खोल दिया जाय। यही कारण था कि वेद को प्रतीकात्मक रूप में लिख कर गुरू-शिष्य परम्परा द्वारा उसकी व्याख्या की जाती रही थी जिससे राजा और समाज को नियंत्रण में रखा जा सके।
विभिन्न भविष्यवक्ताओं के भविष्यवाणीयों के अनुसार ही सन् 1992-2012 ई0 के बीच जो कार्य सम्पन्न हुये और जो इस विश्व के नवसृजन के लिए नई घटना घटी वो निम्न प्रकार है।
1. द्वापर युग में आठवें अवतार श्रीकृष्ण द्वारा प्रारम्भ किया गया कार्य ”नवसृजन“ के प्रथम भाग ”सार्वभौम ज्ञान“ के शास्त्र ”गीता“ के बाद कलियुग में शनिवार, 22 दिसम्बर, 2012 से काल व युग परिवर्तन कर दृश्य काल व पाँचवें युग का प्रारम्भ , व्यवस्था सत्यीकरण और मन के ब्रह्माण्डीयकरण के लिए दसवें और अन्तिम अवतार-कल्कि महावतार श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा व्यक्त द्वितीय और अन्तिम भाग ”सार्वभौम कर्मज्ञान“ और ”पूर्णज्ञान का पूरक शास्त्र“, ”विश्वशास्त्र: द नाॅलेज आॅफ फाइनल नाॅलेज“ के रूप में व्यक्त हुआ।
2.जिस प्रकार सुबह में कोई व्यक्ति यह कहे कि रात होगी तो वह कोई नई बात नहीं कह रहा। रात तो होनी है चाहे वह कहे या ना कहे और रात आ गई तो उस रात को लाने वाला भी वह व्यक्ति नहीं होता क्योंकि वह प्रकृति का नियम है। इसी प्रकार कोई यह कहे कि ”सतयुग आयेगा, सतयुग आयेगा“ तो वह उसको लाने वाला नहीं होता। वह नहीं ंभी बोलेगा तो भी सतयुग आयेगा क्योंकि वह अवतारों का नियम है। सुबह से रात लाने का माध्यम प्रकृति है। युग बदलने का माध्यम अवतार होते हैं। जिस प्रकार त्रेतायुग से द्वापरयुग में परिवर्तन के लिए वाल्मिकि रचित ”रामायण“ आया, जिस प्रकार द्वापरयुग से कलियुग में परिवर्तन के लिए महर्षि व्यास रचित ”महाभारत“ आया। उसी प्रकार प्रथम अदृश्य काल से द्वितीय और अन्तिम दृश्य काल व चैथे युग-कलियुग से पाँचवें युग-स्वर्णयुग में परिवर्तन के लिए शेष समष्टि कार्य का शास्त्र ”विश्वशास्त्र“ सत्यकाशी क्षेत्र जो वाराणसी-विन्ध्याचल-शिवद्वार-सोनभद्र के बीच का क्षेत्र है, से भारत और विश्व को अन्तिम महावतार श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा मानवों के अनन्त काल तक के विकास के लिए व्यक्त किया गया है।
3.कारण, अन्तिम महावतार श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ और ”आध्यात्मिक सत्य“ आधारित क्रिया ”विश्वशास्त्र“ से उन सभी ईश्वर के अवतारों और शास्त्रों, धर्माचार्यों, सिद्धों, संतों, महापुरूषों, भविष्यवक्ताओं, तपस्वीयों, विद्वानों, बुद्धिजिवीयों, व्यापारीयों, दृश्य व अदृश्य विज्ञान के वैज्ञानिकों, सहयोगीयों, विरोधीयों, रक्त-रिश्ता-देश सम्बन्धियों, उन सभी मानवों, समाज व राज्य के नेतृत्वकर्ताओं और विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र के संविधान को पूर्णता और सत्यता की एक नई दिशा प्राप्त हो चुकी है जिसके कारण वे अधूरे थे। इस प्रकार अन्तिम महावतार के रूप में ”विश्वशास्त्र“ के द्वारा स्वयं को स्थापित करने वाले श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ पूर्णतया योग्य सिद्ध होते हैं और शास्त्रों व अनेक भविष्यवक्ताओं के भविष्यवाणीयों को पूर्णतया सिंद्ध करते है। भविष्यवाणीयों के अनुसार ही जन्म, कार्य प्रारम्भ और पूर्ण करने का समय और जीवन है।

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