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अमृत कुम्भ-2013, पृष्ठ – 59

AMRIT KUMBH - 2013
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दान/पुरस्कार का सत्य-अर्थ

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”इस कलयुग में मनुष्यों के लिए एक ही कर्म शेष है आजकल यज्ञ और कठोर तपस्याओं से कोई फल नहीं होता। इस समय दान ही अर्थात एक मात्र कर्म है और दानो में धर्म दान अर्थात आध्यात्मिक ज्ञान का दान ही सर्वश्रेष्ठ है। दूसरा दान है विद्यादान, तीसरा प्राणदान और चैथा अन्न दान। जो धर्म का ज्ञानदान करते हैं वे अनन्त जन्म और मृत्यु के प्रवाह से आत्मा की रक्षा करते है, जो विद्या दान करते हैं वे मनुष्य की आॅखे खोलते, उन्हें आध्यात्म ज्ञान का पथ दिखा देते है। दुसरे दान यहाॅ तक कि प्राण दान भी उनके निकट तुच्छ है। आध्यात्मिक ज्ञान के विस्तार से मनुष्य जाति की सबसे अधिक सहायता की जा सकती है।“ – महर्षि मनु

”पुण्य, व्यक्तिगत कर्म के लिए सत्य पात्र को दान, दुसरो की सेवा और देखभाल, अपने पुण्य का भाग दुसरों को देना, दुसरे द्वारा दिये गये पुण्य के भाग को स्वीकारना“ -भगवान बुद्ध (लोक धर्म शिक्षा)
”सावधान रहो! तुम मनुष्यों को दिखाने के लिए अपने धर्म के काम न करो, नहीं तो अपने स्वर्ग स्थित पिता से कोई फल नहीं पाओगे। इसलिए जब तू दान करे, तो अपने आगे तुरही न बजवा जैसा कपटी लोग सभाओं व गलियों में करते हैं, ताकि लोग उनकी बड़ाई करे। मै तुमसे सच कहता हूॅ कि वे अपना फल पा चुके“ – ईसामसीह
”यह कि तू कहे कि मैने सर्वोच्च अल्लाह की दासता स्वीकार की है और मैं उसका ही हूॅ और यह कि तू नमाज (प्रार्थना) कायम कर और जकात (दान) दे। यह कि तू भूखों को खाना खिला और तू जिन्हें जानता है और जिन्हें नहीं जानता, उन सबको सलाम कर“ – मुहम्मद पैगम्बर
”भगवान से दान लेने वाले थक जाते हैं किन्तु उनकी उदारता अथक है। युगो से मानव, भगवान की उदारता पर पलता आ रहा है। अरे नानक, उनकी इच्छा संसार का निर्देशन करती है परन्तु फिर भी वे असक्त अथवा चिन्ता से अलिप्त रहते है“ -गुरू नानक
”धनी व्यक्तियों को अपने धन से भगवान और भक्तों की सेवा करनी चाहिए और निर्धनों को भगवान का नाम जपते हुए उनका भजन करना चाहिए“ – श्री माॅ शारदा
”दान से बड़ा और धर्म नहीं। हाथ सदा देने के लिए ही बनाए गये थे। कुछ मत माॅगों बदले में कुछ मत चाहो। तुम्हें जो देना है दे दो, वह तुम्हारे पास लौटकर आयेगा, पर अभी उसकी बात मत सोचो। वह वर्धिक होकर, सहस्त्र गुना वर्धिक होकर वापस आयेगा, पर ध्यान उधर न जाना चाहिए। तुममे केवल देने की शक्ति है। दे दो, बस बात वहीं पर समाप्त हो जाती है।“ – स्वामी विवेकानन्द

मानवता के लिए सत्य-कार्य एवं दान/पुरस्कार के लिए सुयोग्य पात्र

अधिकतम व्यक्ति अपने बहुत सी खुशियों व इच्छाओं की पूर्ति अपने व्यक्तिगत समस्याओं के कारण नहीं कर पाते। इसी कारण ऐसा कार्य जो उन्हें आनन्द और उनके सपनों को पूर्ण करता है, कार्य करने वाले को पुरस्कार या दान देकर स्वयं को संतुष्टि प्रदान करते हैं। लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ का कार्य भारत सहित विश्व के मानवता के लिए सर्वोच्च व अन्तिम कार्य है। फलस्वरुप यह अनेक मानवों की इच्छा की पूर्ति भी है। लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ का कार्य मनुष्य के उस बिन्दु पर कार्य है, जहाँ से मनुष्य स्वयं अपनी सहायता के लिए तैयार हो सके। लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ इस सर्वोच्च और अन्तिम कार्य के लिए व्यक्तिगत/संस्थागत/समूह से सहयोग की अपेक्षा करते हैं जिसके वे सुयोग्य पात्र भी है। यह आपके लिए इस जीवन में एक ऐसा सुअवसर है जिसमें आपका थोड़ा सहयोग भी इस महान कार्य के लिए महान योगदान होगा। जिसको आप स्वयं अनुभव करेगें। दान/पुरस्कार देने के लिए निम्नलिखित बैंक विवरण का प्रयोग करें और अपनी इच्छानुसार विवरण kalki2011@rediffmail.com पर ई-मेल कर दें-

A/C Holder’s Name : LAVA KUSH SINGH

BRANCH : SIGRA (DISTT. VARANASI, U.P., INDIA)
A/C NO. : 031001515081

IFSC CODE : ICIC0000310
BANK : ICICI BANK PAN NO. : BJKPS6871D

शास्त्रों को पढ़ने व चिन्तन से लाभ होता है, उसकी पूजा से नहीं।

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